सरकारी स्वामित्व वाली बीईएमएल (भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड) को दो हाई-स्पीड ट्रेनों की डिजाइनिंग, निर्माण और संचालन के लिए 867 करोड़ रुपये का ठेका मिला है। पहली बार देश में ऐसी स्वदेशी बुलेन ट्रेन का निर्माण होना है। इनकी अधिकतम गति 250 से 280 किलोमीटर प्रति घंटे होगी। बीईएमएल को हाई स्पीड ट्रेन बनाने का ठेका चेन्नई स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आईसीएफ) की ओर से दिया गया है। बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार रेल मंत्रालय ने आईसीएफ से दो ऐसी रेलगाड़ियां बनाने को कहा है जो 250 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की रफ्तार से चल सकें। अब आईसीएफ ने इन रेलगाड़ियों के लिए टेंडर जारी कर काम बीईएमएल को सौंप दिया है। बीईएमएल ने एक्सचेंजों को दी जानकारी में बताया, "इसके प्रत्येक डिब्बे की कीमत 27.86 करोड़ रुपये होगी और पूरा अनुबंध 866.87 करोड़ रुपये का है।" कंपनी ने बताया है कि इस राशि में डिजाइन की लागत, एक बार ट्रेन तैयार करने की लागत, गैर-आवर्ती शुल्क, जिग्स, फिक्सचर, टूलींग और परीक्षण सुविधाओं के लिए किया गया एकमुश्त निवेश शामिल है। कंपनी के अनुसार इस परियोजना के लिए तैयार परीक्षण सुविधाओं का उपयोग भारत में भविष्य की सभी हाई-स्पीड परियोजनाओं के लिए किया जाएगा। कंपनी ने ताया, "यह परियोजना भारत की हाई-स्पीड रेल यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। यह 280 किमी प्रति घंटे की परीक्षण गति के साथ चलने वाली और स्वदेशी रूप से डिजाइन और निर्मित होगी।" ये सेट बीईएमएल के बेंगलुरु रेल कोच कॉम्प्लेक्स में बनाए जाएंगे और इनकी डिलीवरी 2026 के अंत तक होने की उम्मीद है। रिपोर्ट के अनुसार जापान से बुलेट ट्रेन खरीदने की बातचीत विफल होने के बाद, रेलवे ने अपनी खुद की बुलेट ट्रेन बनाने का फैसला किया है। यह अभी स्पष्ट नहीं है कि BEML की ओर से विकसित की जाने वाली ट्रेनें मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल कॉरिडोर के लिए होंगी या नहीं। बीईएमएल के अनुसार, पूर्णतः वातानुकूलित रेलगाड़ियों में झुकने योग्य और घूमने योग्य सीटें, यात्रियों के लिए विशेष सुविधाएं और ऑनबोर्ड इंफोटेनमेंट सिस्टम होंगे। रेलवे ने पिछले साल राजस्थान में मानक गेज वाली ट्रेनों के लिए ट्रैक विकसित किया है, ताकि हाई-स्पीड ट्रेनें विकसित करने की अपनी क्षमताओं का परीक्षण किया जा सके। इसका लक्ष्य वंदे भारत ट्रेनों को निर्यात करना है, जिन्हें ब्रॉड गेज से मानक गेज में परिवर्तित किया जाना है, जो विश्व स्तर पर सबसे अधिक स्वीकार्य हैं।
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